Radha Krishna cover art

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राधा की आँखों में भीगा सवेरा,
कान्हा के कदमों में जाने का डेरा।
आज वृंदावन की मिट्टी भी रोयी,
जब प्रेम का आकाश दो राहों में खोयी।

कृष्ण ने बोले—
“राधे, मुझे जाना है,
धर्म का पथ निभाना है।
कंस के अत्याचार का अंत करूँ,
जनता को फिर से मुक्त करूँ।”

राधा ने धीमे संग मुस्काकर पूछा—
“कान्हा, क्या इस विदाई से प्रेम कम होगा?”
कृष्ण ने आँसू छुपाकर कहा—
“राधे, प्रेम तो श्वास है,
जो दूर भी रहे, फिर भी साथ है।
तुम मेरे हर युद्ध का मौन साहस हो।”

हवा में bansuri की अधूरी धुन,
मोरपंख भी थमा हुआ मन।
गोकुल की गलियों ने रोक लिया रास्ता,
पर कर्तव्य की राह ने बुलाया कृष्ण को सच्चा।

राधा ने आखिरी बार कहा—
“अगर तीरों की बारिश में तुम डगमगाओगे,
तो मेरे नाम को स्मरण कर लेना।
मैं तुम्हारी ढाल बन जाऊँगी।
तुम चलते रहना, कान्हा…
मैं प्रतीक्षा बनकर साँसों में रहूँगी।”

कृष्ण ने पलटकर देखा,
समय वहीं रुक गया।
फिर हल्के से बोले—
“राधे, जब मैं लौटूँगा,
तो विजय नहीं,
पहले तुम्हारा आशीर्वाद माँगूँगा।”

और वे चल पड़े Mathura की ओर,
धर्म का दीप लिए।
पीछे छूट गया वृंदावन,
पर हृदय में बस गई राधा…
सदा के लिए।